Shree Swami Samarth Nam:

|| श्री स्वामी समर्थ ||


|| शिव गोरक्ष बावनी ||


।श्री गणेशाय नमः।
श्री स्वामी सामर्थाय नमः ।

शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते शेष महेश॥
सरस्वती पूजन करे वंदन करे गणेश॥१

शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो मन दिन रात॥
आवागमन को भेट के मनवांछित फल पात॥२

शिव गोरक्ष शुभनाम से हुए है सिद्ध सुजन॥
नाम प्रभाव से मिट गया लोभ क्रोध अभिमान॥३
शिव गोरक्ष शुभनाम से हो जाओ भावः पार॥

कलिकाल में है बड़ा सुंदर खेवन हार॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जिसने लिया चित्तलय ॥

अश्त्ता सिद्धि नवनिधि मिली, अंत में अमर कहे ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति अपरम्पार ॥

लेत ही मिट जाट है अन्तर के अन्धकार ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है रटे जो निष् दिन जिव ॥

नश्वर यह तन छोड़ के जिव बनेगा शिव॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रट ले अघाय
काहे को चंचल भया जैसे पशु हराय॥

शिव गोरक्ष शुभनाम में निष् दिन कर तू वास॥
अशुभ कर्म सब छूट है सत्य का होगा भास॥

शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति भरी अगाध॥
लेने से ही तर गए नीच कोटि के व्याध ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को जो धरे अन्तर बिच॥
सबसे ऊँचा होत है भले होया वह नीच ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम में करे जो नर अति प्रेम ॥
उसको नही करना पड़े पूजा व्रत जप नेम ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो बारम्बार
सहजही में हो जायेंगे भावः सिन्धु से पार।

शिव गोरक्ष शुभनाम से सिख लेव अद्वैत।
मेरा तेरा छोड़ दो तजो सका ये द्वैत ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रत्ना आठो यम् ॥

आख़िर में यह आएगी मोदी तुमको कम
शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति भरी अथाह॥

रटने वालो को मिला भावः सिन्धु का थाह॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को पहिचान जयदेव

यह दुस्सह संसार से तर गए वो तट खेव॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रसना रट तू हमेश॥

वृथा नही बकवाद कर पल पल काहे आदेश॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रतल तू चिट्टा लाया

घोर कलि से बचने का एक यही उपाय ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रट दिन रात ॥

झूट प्रपंच को त्याग दे छोड़ जगत की बात॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रसना कर तू याद॥

काहे स्वार्थ में भूल के वृथा करत बद्कवाद॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रट दिन रैन ॥

कभू न खली जन दे एक भी तेरा बैन॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को सुमिरे कोटि संत॥

श्री नाथ कृपा से हो गया जन्म मरण का अंत
शिव गोरक्ष शुभनाम है निर्मल पवन गंग
रटने से रहती है सदा सदा रिद्धि सिद्धि सब संग॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा पूनम चाँद ॥
रटते है निशदिन उन्हें राम कृष्ण गोविन्द ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा गंगा नीर ॥
रट के उतरे कोटि जन भावः सागर के तीर॥

शिव गोरक्ष शुभनाम में जो जन करते आस
निश्चय वो तो जाट है अलख पुरूष के पास ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे सुंदर आम ॥
रटने से ही हो गया अमर जगत में नाम ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम में जैसे दीप प्रकाश॥
नित रटने से होत है अलख पुरूष का भास ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है उदधि तरन को जहाज ॥
रटने से हो गया है अमर भरतरी राज ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे सूर्य किरण ॥
रतल जिव तू प्रेम से चाहे जो सिन्धु तरन ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है निर्मल और विशुधा ॥
रटने से शुदा होत है होया जो जिव अशुधा ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है अमर सुधा रस बिन्द॥
पिने से हो गए है अजर अमर गोपीचंद ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है रटे अनेको राज ॥
जरा मरण का भय मिटा सुधरे सबके काज॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को रता है पूरण मल ॥
आधी व्याधि मिट गई जन्म मरण गया टल॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते चतुर सुजन
अन्तर तिमिर विनाश हो उपजत है शुध्हा ज्ञान ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है सुंदर उज्जवल भान ॥
रटने वालो को कभी होवे नही कुछ हान॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को परस पत्थर जान ॥
जिव रूपी इस लोह को करते स्वर्ण समान ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को जानो सुर तरु वर ॥
रटने से मिल जाट है जिव को इच्छित वर ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते कोटिक संत
नाम प्रताप से कट गया चौरासी का फंद ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम का बहुत बड़ा है पर्व ॥
जिसको है रटते सदा सुर नर मुनि गन्धर्व ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते श्री हनुमान
भक्तो में हुए अग्रगण्य देवो में मिला मान ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो जिव अज्ञान
नाभि प्रताप से होत है निश्चय चतुर सुजान॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे निर्मल जल ॥
प्रेम लगा रटते रहो क्षण क्षण और पल ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है कलि तरन हार ॥
रटने वालो के लिए खुला है मोक्ष का द्वार॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा स्वच्छा आकाश ॥
रटने वालो को बना लेते है निज दास॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है अग्ने अपो आप ॥
रटने वालो को सभी जल जाते है पाप ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम है अमर सुधारस बिन्दु ॥
पिने से तर जाट है सहज ही में भावः सिन्धु ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम की महिमा अपरम्पार ॥
कृपा सिन्धु की बिन्दु को कार्ड भावः से पार ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को बंदन करू हज़ार ॥
कृपा करो त्रिलोक पार करदो भावः से पार ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को प्रेम सहित आदेश ॥
ऐसी कृपा करो प्रभु रहे नही कुछ शेष ॥

शिव गोरक्ष शुभनाम को कोटि करू आदेश॥
करके कृपा मिटाइए जन्म मरण का क्लेश॥

ॐ शिव गोरक्ष अल्लख निरंजन आदेश ।
गोरक्ष बालम गुरु शिष्य पालं शेष हिमालम
शशि खंड भालं ॥
कालस्य कालं जित जन्म जालम
वंदे जटालं जग्दाब्जा नालं ॥

सुने सुनावे प्रेमवश पूजे अपने हाथ ।
मन इच्छा सब कामना , पुरे गोरक्षनाथ

गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ
अल्लख ॥ ॥ ॥ ॥ ॥

॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||


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